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वीरेन डंगवाल पर केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार संपन्न
कोरोना के इस क्रूर व कठिन दौर में जनसामान्य में जीवन के प्रति आस्था बनाए रखने के लिए 9 मई 2020 को रामनारायण रुइया स्वायत्त महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा 'समकालीन कविता और वीरेन डंगवाल का काव्य' विषय पर एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया । इस वेबिनार में संपूर्ण भारत के लगभग एक दर्जन से ज्यादा राज्यों से साहित्य मर्मज्ञ व विद्यार्थी जुड़े थे और विदेश से (मॉरीशस, जापान और श्रीलंका )अनेक विद्वान सम्मिलित थे ।
इस वेबिनार में प्रसिद्ध कवि श्री मंगलेश डबराल, डॉ. विजय कुमार, श्री रविंद्र त्रिपाठी, श्री हरिमृदुल, श्री हृदेश मयंक, डॉक्टर सतीश पांडेय, डॉक्टर वशिष्ठ अनूप, डॉक्टर करुणाशंकर उपाध्याय, डॉ अनिल सिंह तथा श्रीलंका से डॉ उपुल रंजीथ, डॉक्टर नीलाथी राजपक्षा, मिस ऋदमा लंगस्कार, व मॉरीशस से डॉ विनय गोदारी, और जापान से डॉ श्याम सुंदर पांडेय और डॉ वेद प्रकाश सिंह ने वेबिनार पर केंद्रित विषय को लेकर अपने विचारों से उपस्थित श्रोताओं का ज्ञानवर्धन किया ।
इस वेबिनार में समकालीन कविता की संरचना पर बात की गई तथा समकालीन कवियों में विशेष स्थान रखने वाले वीरेन डंगवाल जी के काव्य के संदर्भ में विस्तार से चर्चा करते हुए बताया गया कि इनके कविताओं का स्वर जितना राजनीतिक है , उतना ही मानवीय भी। इस दौरान इस बात का भी उल्लेख किया गया कि वीरेन डंगवाल के यहां एक तरफ मुक्तिबोध की - सी बौद्धिक द्वंद्वात्मकता है तो दूसरी तरफ नागार्जुन की तरह गहरी व्यंजना व सरोकार है तो त्रिलोचन जैसा लोक राग व गहरी जनपक्षधरता भी। एक तरफ जहां वे अपना काव्य स्वरूप रचते हैं, वहीं दूसरी तरफ परंपरा को भी संपन्न करते हैं। वे मनुष्य की गरिमा को हर हाल में प्रतिष्ठित करने वाले कवि हैं । अतः उनकी कविताएं हिन्दी काव्य की न केवल धरोहर हैं, अपितु आगे की पीढ़ी के लिए ज्योति स्तंभ भी हैं ।
इस कोरोना जैसी महामारी के दौरान किए जाने वाले साहित्यिक वेबिनारों में यह पहला वेबिनार है जो लगभग बिना किसी व्यवधान के पांच घंटे तक चला । इस दौरान देश विदेश के सभी श्रोताओं ने उपस्थित विद्वानों के विचारों को पूरी निष्ठा और धैर्य के साथ आत्मसात किया । वेबिनार के आयोजक डॉ प्रवीण चंद्र बिष्ट ने हिंदी विभाग की ओर से उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत किया तो महाविद्यालय की ओर से प्राचार्या डॉ अनुश्री लोकुर जी ने । रिद्धि जोशी ने सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की ।
विश्व प्रसिद्ध लेखक सआदत हसन मंटो पर एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार सम्पन्न
18 मई 2020 को रामनारायण रुइया स्वायत्त महाविद्यालय, मुम्बई के हिंदी विभाग द्वारा सआदत हसन मंटो की कहानियों के पाठ पर केंद्रित 'एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार' का आयोजन किया गया । इसमें कुल ग्यारह कहानियां पढ़ी गई । जिसमें लंदन से सुश्री शिखा वार्ष्णेय, जापान से डॉ वेदप्रकाश सिंह, मुंबई से डॉ. सतीश पांडेय, श्री शैलेश सिंह, डॉ उषा मिश्रा, डॉ मिथिलेश शर्मा, डॉक्टर सत्यवती चौबे, डॉ प्रवीण चंद्र बिष्ट, सुश्री साक्षी शर्मा, दिल्ली से सुश्री सरिता माली, उत्तराखंड से सुश्री नेहा जोशी शामिल थे । वेबिनार का संचालन डॉ प्रवीण चंद्र बिष्ट ने किया । उपस्थित अतिथियों का स्वागत महाविद्यालय के उप-प्राचार्य डॉ. मनीष हाटे जी ने किया । मंटो की रचना प्रक्रिया के संबंध में उनके साहित्य की अध्येता डॉ. वसुधा सहस्रबुद्धे ने उपस्थित श्रोताओं का ज्ञान वर्धन किया । इस वेबिनार में भारत के एक दर्जन से अधिक राज्यों से प्रतिभागी शामिल हुए थे । अंत में वेबिनार के संदर्भ में मुंबई विश्वविद्यालय के अध्ययन मंडल के अध्यक्ष डॉ. अनिल सिंह तथा श्री योगेश मिश्रा व मनोज मिश्रा ने अपना मत प्रकट किया ।
वेबिनार के आयोजक डॉ प्रवीण चंद्र बिष्ट ने सभी अतिथियों का आभार प्रकट करते हुए कार्यक्रम के समाप्ति की घोषणा की ।
मंटो पर केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार के संबंध में जनवादी लेखक संघ के सचिव शैलेश सिह जी (मुंबई) की प्रतिक्रिया कल दिनांक 18 मई सोमवार को दिन के ग्यारह बजे मुंबई के रामनारायण रुइया स्वायत्त महाविद्यालय, माटुंगा , ने भारतीय उपमहाद्वीप के ज्वाजल्यमान कथाकार मंटो को बड़े ही नायाब तरीके से याद किया। वास्तव में यह कार्यक्रम उनके जन्मदिन ग्यारह मई को आयोजित होनेवाला था, पर समुचित तकनीकी व्यवस्था न हो पाने के कारण उस दिन संभव नहीं हो सका। बाद में महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रमुख डॉ प्रवीण चंद्र बिष्ट ने एक सप्ताह बाद 18 मई को इस कार्यक्रम को आयोजित करने का निर्णय लिया। इस स्मृति कार्यक्रम में जापान, कनाडा, नई दिल्ली, मुंबई तथा उसके उपनगरों से तकरीबन डेढ़ सौ से अधिक लोग जुड़े। इस दृष्टि से यह बहुत ही प्रेरणादाई व रचनात्मक स्मृति गोष्ठी रही। प्रारंभ में महाविद्यालय के उपाचार्य व रसायन विज्ञान के प्रमुख डॉ मनीष हाटे ने अतिथियों का खैरमकदम किया। उन्होंने अपने स्वागत वक्तव्य में सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कहा कि मुझे अपार खुशी हो रही है कि आज आप जैसे तमाम बुद्धिजीवी व रचनाकार मंटो स्मृति गोष्ठी में शामिल हो रहे हैं। मैं रामनारायण रुइया स्वायत्त महाविद्यालय की तरफ से आप सभी का अपनी व महाविद्यालय की तरफ से हार्दिक स्वागत् करता हूं। इस करोना के संकटकाल में आप लोगों से जुड़ना बेहद ऊर्जा प्रदान करने वाला क्षण है। सामाजिक दूरी को हम अपनी बौद्धिक व भावनात्मक निकटता से दूर कर रहे हैं यह बेहद हर्ष का विषय है। सआदत हसन मंटो की कहानियां इंसानी ट्रेजडी की बेहद मार्मिक दास्तान है। उनकी कहानियों में जहां एक तरफ विभाजन की पीड़ा है तो वहीं दूसरी तरफ स्त्रियों की स्मिता व उनके संघर्ष की जीवन्त धड़कन है। दूसरी तरफ साम्प्रदायिक घृणा व उससे उपजी अवमानना के कुफल हैं । तीसरी बात उनकी कहानियों के संदर्भ में यह कही जाती है कि उनकी कहानियों में इन सबके खिलाफ मनुष्य का अवश प्रतिरोध भी दिखाई देता है। मंटो के अफसानों में मनुष्य की गरिमा के प्रतिष्ठापन का कमाल का जद्दोजहद व एक गहरी विकलता दिखाई देती है। डॉ हाटे ने कहा कि कोविड -19 के इस महामारी के संकटकाल में भी हमारा महाविद्यालय व हिन्दी विभाग किसी न किसी रूप में रचनात्मक व भावनात्मक रूप से आप से जुड़ने का उपक्रम करता रहा है। डॉ मनीष हाटे के इस स्वागत भाषण के बाद डाॅ वसुधा सहस्रबुद्धे ने सआदत हसन मंटो के जीवन व कार्य का संक्षिप्त परिचय दिया। उन्होंने कहा कि मंटो एक ऐसा लेखक था , जो विभाजन की त्रासदी से अपने को कभी मुक्त नहीं कर पाया। वह न पाकिस्तान का हो सका न हिंदुस्तान का। बावजूद इसके उसने लेखन की तमाम चुनौतियों को न केवल स्वीकार किया , अपितु बेहद रचनात्मक कहानियां लिख कर भारतीय उपमहाद्वीप का एक बड़ा रचनाकार बनकर खड़ा हुआ । मंटो की कहानियों में जहां एक तरफ विभाजन की पीड़ा है तो वहीं दूसरी तरफ धार्मिक कट्टरता के खिलाफ जबरदस्त प्रतिरोध भी समुद्र की लहरों की तरह तरंगायित होता है। मंटो की कहानियों , रेडियो नाटक तथा संस्मरणों में हमें तत्तकालीन भारत की जो तस्वीर दिखाई देती है वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। मंटो को याद करना अपने को छीलने जैसा है। मंटो ने अपने लेखन की कीमत भी चुकाई। जो रचनाकार मनुष्य के पक्ष में लिखेगा उसे निजाम के दमन का शिकार होना पड़ेगा। मंटो को भी दमन का शिकार होना पड़ा। उनको याद करना उन यातनाओं से भी दो चार होना है। डॉ वसुधा सहस्रबुद्धे के इस संक्षिप्त वक्तव्य के बाद मंटो की कहानियों के पाठ का कार्यक्रम शुरू हुआ। प्रारंभ में विल्सन महाविद्यालय के हिन्दी विभाग की प्रवक्ता डॉ सत्यवती चौबे जालियांवाला बाग के नरसंहार की पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी *तमाशा* का पाठ किया। तमाशा कहानी में एक बच्चे के माध्यम से ब्रिटिश सत्ता के दमन की क्रूर अभिव्यक्ति की गई है। कहानी में मनोवैज्ञानिक टूल्स का बहुत ही प्रभावशाली इस्तेमाल किया गया है। सत्यवती जी ने तमाशा कहानी का बड़ा ही प्रभावशाली पाठ किया। तमाशा कहानी के बाद रामनिरंजन झुनझुनवाला महाविद्यालय के हिन्दी विभाग की प्रमुख डॉ मिथिलेश शर्मा ने *औलाद* कहानी का पाठ किया। इस कहानी में एक नि: संतान स्त्री की पीड़ा का बड़ा ही हृदयविदारक चित्रण किया गया है। यहां भी लेखक ने मनोवैज्ञानिक टूल्स का बेहतरीन प्रयोग किया है। कहानी पाठकों को झकझोर कर रख देती है। एक नि: संतान स्त्री के संतान की तीव्र लालसा के भाव को डा शर्मा ने बेहद प्रभावी तरीके से पढ़ा। इस कहानी के बाद दिल्ली की सरिता माली जोकि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की शोध छात्रा हैं ने *खुदा की कसम* नामक कहानी का पाठ किया। उन्होंने कहा कि इस कहानी की प्रस्तुति की तैयारी में वे कई बार रोईं। यह कहानी भी बेहद मार्मिक थी। इस रोचक प्रस्तुति के बाद मंटो की बेहद मकबूल कहानी का पाठ जनवादी लेखक संघ, महाराष्ट्र के सचिव शैलेश सिंह ने *खोल दो* पढ़ी। जैसा कि विदित हो यह कहानी भी विभाजन की भयानक त्रासदी का जीवन्त दस्तावेज है। एक सत्रह साल की लड़की जो तमाम दंगाइयों से किसी तरह से बच जाती है, उसे उसके पिता के जाननेवाले युवकों की हविस व वासना का शिकार होना पड़ता है। मंटो ने यह बताया है कि इंसान के वेश में हैवान हर जगह मौजूद रहते हैं। यहां एक बेबस बाप की पीड़ा का दिलदहला देने वाला मंजर दिखाई देता है। इस मार्मिक प्रस्तुति के बाद उत्तराखंड की सुश्री नेहा जोशी ने मंटो की कहानी *शरीफन* का पाठ किया। इस कहानी की प्रस्तुति भी बेहद मार्मिक व प्रभावशाली थी। नेहा जी के इस पाठ के बाद के जे सोमैया महाविद्यालय के पूर्व उप प्रधानाचार्य व हिन्दी विभाग के प्रमुख डॉ सतीश पांडेय जी ने मंटो की कहानी *लाइसेंस* पढ़ी। यह कहानी स्त्री विमर्श का प्रारंभिक पाठ है। एक स्त्री का ऐसे क्षेत्र में प्रवेश करना जो हमेशा से पुरुषों के एकाधिकार में रहा हो, हमेशा व्यवस्था केलिए एक चुनौती बनती है। यहां एक महिला तांगा चलाने का काम शुरू करती है। जैसा कि विदित हो तांगा चालक हमेशा से पुरुष ही होते रहे हैं। ऐसे में एक स्त्री का पुरुषों के लिए आरक्षित क्षेत्र में प्रवेश करना पुरुष आधिपत्य वाले समाज को झकझोरना है। यहां एक तरफ उस स्त्री को पुरुषों की कामुक अभिव्यक्तियों को झेलना पड़ता है वहीं दूसरी तरफ समाज के ठेकेदारों की चेतावनियां भी झेलनी पड़ती है। यहां स्त्री का साहस इतना है कि वह सब कुछ का सामना करती है, पर सत्ता - व्यवस्था कैसे उसे इतनी आसानी से स्वीकार कर लें। अंत में वह उसके लाइसेंस को रद्द कर देती है। संभवतः सोले फिल्म की नायिका का तांगा चलाना इसी कहानी की प्रेरणा से हो। बाद में एम एम पी शाह महिला महाविद्यालय की डा उषा मिश्रा ने *फूजा हराम दा* का पाठ किया। उषा जी के बाद साक्षी शर्मा ने *टेंटवाल का कुत्ता* नामक कहानी का पाठ किया। यह कहानी एक निरीह कुत्ते के माध्यम से हिंदुस्तान - पाकिस्तान की घृणा और दुश्मनी के भाव को उजागर करती है। एक कुत्ता सीमा के इस पार उस पार आसानी से घूमता है। दोनों देशों के सैनिक उसे प्यार करते हैं पर जैसे ही उन्हें पता लगता है यह पाकिस्तान की तरफ गया था वे फायर कर उसे मार डालते हैं। यहां कुत्ता ,कुत्ता न हो कर एक दुश्मन देश का दुश्मन बन जाता है। लेखक ने घृणा व हिंसा के आदिम भाव को बड़ी ही खूबसूरती से बयां किया है। साक्षी जी ने इस कहानी को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। इस शानदार प्रस्तुति के बाद जापान के ओसाका विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में कार्यरत डॉ वेद प्रकाश सिंह ने *आम* कहानी का पाठ किया। आम कहानी में एक बूढ़े व्यक्ति की सेवा व स्वामिभक्ति का बड़ा ही रोचक किस्सा दर्ज हुआ है। इस प्रस्तुति के बाद लंदन की पत्रकार व प्रसिद्ध लेखिका सुश्री शिखा वार्ष्णेय ने *यजीद* कहानी का पाठ किया। यजीद कहानी लंबी व प्रतीकात्मक थी, पर शिखा जी ने उसे बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत किया। इस प्रस्तुति के बाद संयोजक डॉ प्रवीण चंद्र बिष्ट ने सआदत हसन मंटो की कहानी *भंगन* का बहुत ही मार्मिक पाठ किया। स्त्री - पुरुष के संबंधों के बारीक तंतुओं से रची यह कहानी स्त्री अस्तित्व व उसकी अस्मिता को जिस तरह प्रस्तुत करती है वह अपने आप में नायाब है। यहां प्रकारांतर से लेखक ने भारत की अस्पृष्यता की समस्या को भी उठाया है। एक स्त्री अपने पति से इसलिए नाराज़ हो जाती है कि वह उसके रखे पैसों में से कुछ पैसा चुरा लेता है, हालांकि यह चोरी वह अपने किसी शौक को पूरा करने के लिए नहीं बल्कि अपनी बीवी के जन्मदिन पर तोहफा देने के लिए करता है। इस चोरी का पता उसे चल जाता है और वह नाराज़ हो जाती है। उसकी नाराज़गी उस समय और बढ़ जाती है , जब वह अपने शौहर को भंगिन को उठाते हुए देखती है। बारिश की फिसलन की वजह से एक भंगिन उसके घर के पास फिसल कर गिर जाती है, और उसका शौहर दौड़ कर उसे उठाता है। उसके उठाने को देखकर उसकी बीवी यह समझती है कि उसके शौहर ने उसके साथ गलत हरकत की है। यहां उसका अस्तित्व जाग उठता है। इस तरह से स्त्री अस्मिता के सवाल को बहुत ही कलात्मकता से इस कहानी में उठाया गया है। अंत में श्री योगेश मिश्रा, श्री मनोज मिश्रा व प्रो अनिल सिंह ने आयोजन पर अपने विचार रखे। डॉ अनिल सिंह ने कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप में मंटो ऐसे कथाकार हैं जिन्होंने सिर्फ कहानियां लिखीं और वे एक कथाकार के रूप में अमर हो गए। एंटेन चेखव व मंटो दो ऐसे कथाकार हैं , जिंन्होंने बिना उपन्यास लिखे ही कथा साहित्य में अपना नाम दर्ज कराया। मंटों ने अपनी कहानियों के माध्यम से सोते हुए समाज को जगाया। वे खतरा मोल लेने वाले लेखक थे। आज हमारे लेखक खतरा मोल लेना छोड़ दिए हैं। मंटो ने अपने लेखन की कीमत चुकाई। कई बार वे जेल गए। मुकदमे लड़े और पागलखाने में भर्ती कराने की नौबत आई। अपने कम उम्र में उन्होंने बहुत कुछ लिखा। उम्र कम और लेखन बड़ा। ऐसा बहुत कम देखा गया है। भारतेंदु, रांगेय राघव व मंटो ऐसे ही रचनाकार थे , जिन्होंने कालजयी रचनाएं की हैं। भारत विभाजन की त्रासदी को केंद्र में रखकर मंटो ने बेहद महत्वपूर्ण कहानियां लिखीं। इंसानी संघर्षों , जिजीविषा व उसके सपनों का मार्मिक दस्तावेज हैं उनकी कहानियां। उनकी कहानियां किसी डाक्यूमेंट्री से कम नहीं हैं। डॉ अनिल सिंह ने प्रवीण चंद्र बिष्ट को धन्यवाद दिया और कहा कि आपने यह आयोजन कर के एक उच्च सांस्कृतिक अनुष्ठान को पूरा किया है। उन्होंने कहा कि सभी कहानियां बहुत ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत की गईं। इस अनूठे कार्य क्रम का सूत्र संचालन राम नारायण रुइया स्वायत्त महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रमुख डॉ प्रवीण चंद्र बिष्ट जी ने किया। अंत में डा बिष्ट ने सभी प्रतिभागियों के प्रति महाविद्यालय की तरफ से कृतज्ञता व्यक्त की। पांच घंटे चले इस कार्यक्रम से लोग अंत तक जुड़े रहे। विनम्र निवेदन।
शि.प्र.मंडली द्वारा संचालित
रामनारायण रुइया स्वायत्त महाविद्यालय के “हिंदी विभाग द्वारा कहानी प्रस्तुतीकरण का आयोजन”
दिनाांक : १२ अप्रैल, २०२१ (सोमवार)
समय : ८.४० से ९.३० तक
वक्ता डॉ. आशा नैथानी दायमा पूर्व हिंदी विभागाध्यक्षा एवं उप-प्राचार्या, संत झेवियर्स कॉलेज (मुंबई )
महाविद्यालय के समन्वय महोत्सव के दौरान आयोजित कार्यक्रम।
महाराष्ट्र शिक्षण समिति द्वारा संचालित महाराष्ट्र महाविद्यालय, निलंगा, जिला - लातूर के हिंदी विभाग द्वारा गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में आंतरजाल के माध्यम से राष्ट्रीय काव्य सम्मेलन का आयोजन दि.27 जनवरी 2021 को किया हैं।
शि. प्र. मंडली द्वारा संचालित रामनारायण रुइया स्वायत्त महाविद्यालय के हिंदी विभाग, सेन्ट्रल बँक ऑफ इंडिया एवं सतर्कता ( Vigilance) विभाग के संयुक्त तत्वावधान में महाविद्यालयीन वक्तृत्व स्पर्धा का आयोजन किया जा रहा हैं।
इस प्रतियोगिता में FY/ SY/ TYBA B.Sc., BMM के सभी विद्यार्थी हिस्सा ले सकते हैं । यह वक्तृत्व स्पर्धा हिंदी , मराठी और अंग्रेजी ( HINDI , MARATHI AND ENGLISH ) तीनों भाषाओं होनी है । प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले व वहां उपस्थित रहने वाले सभी विद्यार्थी नीचे दी गई लिंक पर अपना रजिस्ट्रेशन करवा लें ।
दिनांक - 28 अक्टूबर 2020 समय - दोपहर 1 बजे से
सूचना : सभी प्रतिभागियों को 5 मिनट (5 minute) का समय दिया जाएगा । निर्णायकों का निर्णय ही अंतिम निर्णय माना जाएगा ।
हिंदी दिवस का आयोजन सम्पन्न
शि. प्र. मंडली द्वारा संचालित रामनारायण रुइया स्वायत्त महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा 14 सितंबर 2020 को हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में महाविद्यालयीन काव्य पाठ प्रतियोगिता का आयोजन किया । इसे वेबिनार के माध्यम से आयोजित किया गया । इस वेबीनार में निर्णायक की भूमिका सेंट जेवियर्स महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ भगवती प्रसाद उपाध्याय व केलकर्स कॉलेज की हिंदी विभागाध्यक्षा डॉ अर्चना दुबे जी ने अदा की । इस प्रतियोगिता में सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया । इस आयोजन का उद्देश्य विद्यार्थियों में छिपी प्रतिभा को निखारना व हिंदी के वैश्विक परिप्रेक्ष्य को बच्चों के समक्ष रखना था । ताकि विद्यार्थी हिंदी भाषा की ताकत व गरिमा को समझ सकें ।
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल ।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।
भारतेंदु हरिश्चंद्र